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जिनकी कनोडिया खड़ी तू इतनी लंबी और नथुने विशाल थे बेसन और मणिमला के अभरण से लगे थे रथ के चरण पर मीन ध्वज फहरा रही थी वातावरण में जनरल भरा था दंड धार शुभ्रा परिधान पहने दौड़ दौड़ कर प्रबंधन व्यवस्था कर
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उन्होंने देवी आम्रपाली पर फेंकना आरंभ किया उनमें से कुछ आम्रपाली के अलावा गोत्र को छूकर उनके चरणों में गिर गई कुछ बिछी में गिरकर अनगिनत भीड़ के पैरों के नीचे कुचल गई जो ही आम्रपाली अपने पुष्प साजिद रथ पर सवार हुई बाग से मृदंग मिराज और धुंध भी
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कुंडली ने वृदा ला से दिखाकर और तनिक मुस्कुराकर
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पूरे सौतन ने दमोह से परिपूर्ण थैली निकल कर दिखाते हुए कहा तो अभी दिखा और सौदा
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सोनी घुटनों के बल बैठकर राजनंदिनी के दोनों हाथ अपने हाथों में लेकर अवरुद्ध कंठ से
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तेरी जय हो रानी आज इतने दिन बाद किधर होठों पर उंगली रख संकट से उसे अपने पास बुलाया और कान में धीरे
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चुप खाने योग्य नहीं वह इस कौशल दुर्ग में बंदी है
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आशु भी है तब विलंब क्यों चल मित्र अभी
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क्या मेरी बात पर विश्वास करते हो
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सेठी वधू ने सास से कहा और सेठानी यह स्वीकार कर सवारों पुत्र को लेकर जहां सार्वजनिक महावीर थे
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एक चिड़िया फैंस लाई हूं अड्डे में समझ जा अभिनय करेंगी ग्राहकों को मध्य देगी अवसर पर बीच लेना 20 डैम से कम ना मिलेंगे
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सोनभद्र मेरे धूमकेतु को लेते जाओ वह बाहर है उसे तुम पशु मत समझना और मेरी ही बात
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ज्यामिति दासी कैसी है
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कोमल उपादान का सहारा लिए अमरपाली अपनी राशियों के साथ हंस हंस कर इन उत्साही युवकों के आखेट की प्रशंसा कर रही थी और उससे वह अपने को कीर्तन मानकर और भी द्विगुण उत्साह से आखेट पर अपने अश्वत्थामा
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वह सब तुम्हें करना पड़ा
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जीवन छह प्रकार के हैं पृथ्वी का एक जल का एक अग्नि का एक वायु का एक वनस्पति का एक और तन
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नहीं रे सीखना नहीं सब जानती है
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विश्वास नहीं होता मित्र तू झूठ बोलना
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मैं सावधान पर लगाता हूं क्या सावधान उसे पुरुष ने आश्चर्य से आंखें फाड़ फाड़ कर सॉन्ग
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मैं जानती हूं प्रियदर्शन पर तुमने वही किया जो तुम्हें करना योग्य था किंतु
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पर पहले माल तो
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घोषणा करके यूं ही वहां आगे बढ़ता मार्ग नरमुंडो से भर जाता कोलाहल के मारे कन नहीं दिया जाता था सूर्य अपने लगा मध्यान्ह हो गया तब सब कोई मधुबन में पहुंचे एक विशाल संघा कुंज में आम्रपाली का डेरा पड़ा उनका मृत्यु कटरा इतनी देर की यात्रा से थक गया था ललाट पर सफेद बिंदु हीरे की कमी के समान चमक
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अध्याय 82 देहांत का
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तुम्हारा यह प्रेम उपहार मेरे जीवन का बहुत बड़ा शहर
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यह सर्वजीत पुरुष प्रत्येक वर्षा ऋतु का चातुर्मास किसी नगर ग्राम में ठहर कर कटता था चार चार उपवास करता और वर्षा की समाप्ति पर फिर पैदल यात्रा करता था इस प्रकार वह कठिन व्रज भूमि लड़ देश को पार कर बादलपुर कडली समागम कुकिंग भद्रक जनपद घूमता हुआ राजगृह में
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उसके साथ वाले पुरुष ने उसे धकेल ते हुए वहां से होठों का मध्य पहुंचते हुए
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नाउन बाहर आई और कुंडली को भीतर ले गई कुंडली का रूप देख देहांत की आंखों में धुंध छा गई उसने हाथ मारते हुए
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बंधन मेरा मित्र है वह सबका सेनापति है मेरा नहीं मेरा मित्र है उसने हंसते
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मैं जानती थी तुम यही करोगे सॉन्ग प्रियदर्शन किंतु मेरे प्रत्येक रो में तुम्हारा वास है और आजीवन रहेगा जीवन के बाद भी आती चिरंतन
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मेरे प्रत्येक रूम कप का संपूर्ण प्रेम मेरे शरीर का प्रत्येक रक्त बिंदु मेरे जीवन का प्रत्येक स्वास्तिक तुम्हारा ही है सील पर यह नहीं हो सकता तुम्हें कौशल की पत्र राज महिषी बना
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अध्याय 58 सर्वजीत
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अब मुझे जाना होगा
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यह दासी मैं लूंगा मुझे सौतन को भी भारी नहीं
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प्रसाद के उद्यान में अशोक के बड़े बड़े वर्षों की कतार चली गई
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अरे वह यह तो बहुत बढ़िया बात है वह क्या कोई एग्रिका है नहीं नथनी है कोई हानि नहीं किंतु सुंदरी है देख ले सुंदरी क्या ऐसी वैसी है तो उसे पिछले द्वारा से भीतर ला वहां आलोक में देख
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तू आर्यपुत्र हम सब क्यों ना सार्वजनिक परिव्राजक के दर्शन करें
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उसे एक सांस में पीकर आम्रपाली उसे कोमल तालाब सैया पर
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ऐसा
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उसे समय उसके सब कर्मों का क्षय हो जाता है वह निरंजन होकर लोक की मुर्दा पर सिद्धि गति को प्राप्त कर शाश्वत सिद्ध बन जाता है महाश्रमण यह उपदेश देकर मौन हो गए शलीभद्र ने स्वरों उठकर उनकी परिक्रमा की और अपनी आवाज को
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कुंडली ने लीला विलास करके उन्हें सम्मोहित कर दिया दोनों झगड़ा बंद कर हंसने और मध्य पीने लगे सॉन्ग नाउन का संकेत था उसके पास आ बैठा उसने कहा
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चित्र को पूरा करके उन्होंने उसे पर का आवरण उठाया एक बूंद अश्रु चित्र
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तो मैं भी तुम्हारे साथ हूं प्रिया नहीं सील ऐसा नहीं हो सकता मुझे जाना होगा और तुम्हें रहना होगा मैं कौशल का अधिपति ना बन सका किंतु तुम कौशल की पथराज महिषी रहोगी यह
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सोमनी राजकुमारी के चरण ताल में बैठकर उसके दोनों हाथ अपने नेत्रों से लगा लिए कुमारी कटे वृक्ष की भांति उनके ऊपर गिर गई उनकी आंखों से अशरफ चली बहुत देर तक दोनों निर्वाह निश्चल रहे फिर कुमारी ने उठकर धीरे से जैसे मारता हुआ मनुष्य बोलता है
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सब मध्य प्रसन्न होते और उसके चारों और आज जूते देहांत ने उसे प्रसन्न करने को आसान भी आसान पर उसे बैठाया नाउन ने कहा यही वह है दांत वह कौन राजपूत को जिसने उदय है देखते तो हो कितना स्वर्ण है इसके पास कर
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अरे पुत्र ने सुना है कि राजगृह में एक सर्वाधिक श्रवण आए हैं जो सब भारतीय शुद्ध बुद्ध मुक्त
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और अंजलि वध प्रणाम कर एक और बैठ गई बैठकर उसने
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अध्याय 92
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क्या कहाँ है मित्र परंतु इसे मैं बोलूंगा
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उन्होंने बड़ी बड़ी पलकें उठाकर सोम को देखा लज्जा से उनका मुख जीत गया दोनों हाथ निहाल से होकर नीचे को
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चेहरे दी कितने में बेचेगा इस दासी को
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सब कुछ देर मौन रहकर महाश्रमण
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अरे मित्र यह खड़क है फिर मेरे पास बाहर दो बढ़िया वह
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सोने के कान खड़े हो गए उसने
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तब अच्छा है तो नाउन पांच गमले देख ले अभी नहीं है बहुत खिलाना पिलाना सीखना पड़ेगा
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पर कह देता हूं 10 डैम लूंगी एक भी काम नहीं
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तोता
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इधर से देवी लाल ने आती बनाया बंद होकर कहा और आम्रपाली लाल कंटक के जूते से सुसज्जित अपने हिंदुस्तान की हुई स्वर्ग से उतरती हुई संजीव सूर्य रश्मि सी प्रतीत हुई युवकों ने अनायास ही उन्हें घेर लिया उनके हाथों में माधवी और रितिक की मंजरी और रक्षा
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तो चल दोनों व्यक्ति अड्डे से बाहर आए और आशु पर चढ़ एक और तेजी से बढ़कर अंधकार में
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सोम ने आगे बढ़कर काटते स्वर
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माल देखो खूब खड़ा है
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अमरकुंज के मध्य में एक सघन वृक्ष के नीचे दुग्ध फन सामवेद कोमल गाड़ी के ऊपर रन जतिन डंडों पर स्वर्णिम विधान तन था अमरपाली वहां आसंदी सोपान पर अलग भाव से उत्थान गई उन्होंने अर्ध निर्मित नेत्रों से मधुलिका की ओर देखते हुए
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मैं सम प्रियदर्शन तुम्हारी चिरकीन करी पत्नी होने में गर्व अनुभव करूंगी नहीं एक अज्ञात कुरिशील नगर ने पंचक की पत्नी महा महिमा में चंपा राजनंदिनी नहीं हो सकती किंतु सोनभद्र मैं तुम्हारी क्या दासी सील हूं मैं तुम्हें आहट करूंगी अपनी सेवा से सानिध्य से निष्ठा से और तुम अपना प्रेम प्रसाद देकर मुझे आप पूरे मन
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उसे दिन बसंत का वह प्रभात लाल लाल लावण्या स्रोत से प्रभावित हो अनुराग सागर की तरह तरंगों में डूबता उतराता
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राजकुमारी ने बड़ी बड़ी भारी पलके उठाकर सोम को देखा और असंगत भाव से
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आध्या
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कल दुर्ग में इसे भेजना चाहिए मित्र कोई कौशल कर वह इस नदी के संबंध में दासी से बात कर रहा है लेकिन मध्य पत्र उसके आगे करके
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उनके नवीन लंबे अनिवार गहरे हरे रंग के पत्तों के बीच खेले लाल लाल फूल बड़े सुहावना लग रहे थे उसी रिक्शावाले के बीच लता कुंज था कुंज के चारों ओर माधवी लता फली हुई थी उसी लता कुंज में बहुत तन्मय हो एक चित्र बना रही थी उनका कंचुक बंधन शीतल हो
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देश
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तू क्या समझ जा विनय कर सकती है
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इस दुष्ट दी ने इसे राजकुमार विद्रोह को भेंट करने का संकल्प किया है
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फिर तुम एक क्षण को भी नहीं रुक लंबे लंबे पर बढ़ते हुए प्रसाद के बाहरी प्रांगण में आंख खड़े हुए वहां कुंडली और शंभू उनकी प्रतीक्षा में खड़े थे उन्होंने धूमकेतु पर प्यार की एक थपकी दी फिर कुंडली की ओर देखकर बिना मुस्कुराए और एक शब्द बोले तीनों प्राणियों ने उसे शिक्षक वैशाली के राजपथ पर
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क्या कह रहा है मित्र ले मध्य
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तो मित्र फिर बड़ा क्या है बंधन सेनापति यदि कौशल दुर्ग में है तो इसलिए को वही ला दो फिर दासी तेरी है एक पल भी खर्च नहीं होगा
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सॉन्ग प्रियदर्शन तुम आहत हो बैठ जाओ बैठ
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एक पत्र माधुरी दीक्षित के श्रवण से लाल लाल सुभाषित मदिरा पाने के हर हर पत्र में
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हाथ का मध्य पत्र रिक्त कर उसने हंसते हुए कहा तो जाए यह कौशल दुर्ग में
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तुम्हारा कल्याण हो तुम सुखी हो कौशल पथराज महिषी सील चंदन चंद्र भद्रेश सुबह के सोने झुक कर खड़क रोशनी से लगाकर राजसी मर्यादा से कुमारी का अभिवादन किया और कब से बाहर पर बढ़ाया कुमारी ने एक पग आगे बढ़कर वाष्प वरुण धवन
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कुंदनी ने कर पास कंचुक पहन कुसुम बना मटक धारण किया नेत्रों को अपंग से श्रृंगार आईटी किया स्थानों पर कौशल पट्टू बांध स्वर्ण भले भुज में पहने अलर्ट राज रंजीत चरणों में झंकार युक्त नूपुर धारण किए माथे पर जाधव बंधु लगाया फिर उसने हंस कर कहा ठीक हुआ
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आयुष्मान 226 जीवनी का
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उसने जाकर कुंडली को संकेत किया कुंडली ने जो नृत्य लास्ट से किया और रूप का उपहार दिखाई तो उपस्थित कर और हलाकू लंपट वह वह करने लगे जिस जारी ने अपनी औरत को गिरवी रख दिया था उसने हाथ के दाम उछाल कर
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तब ऐसा ही हो सुबह तू माता से जाकर अनु
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परंतु रात है तो क्या हुआ कानून में है
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अभी नहीं नाउन ने हंस कर कहा फिर उसने उठकर बहुत साल लोड रेनू उसके मुख पर पहुंचकर मुख को मानसिल से लांचर कर दिया स्याही से चिपक और कपोल पर तिल बनाया और हाथों में रंगीन हस्त दांत के चूड़े पहना है फिर लंबे के बंधन कमर में लटका कॉल पठान आया और तब कहा अब हुआ
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यह नहीं है वह है उसने दोनों जारी की ओर संकेत किया नाउन ने उचक कर उन्हें देखा और कुंडली को संकेत
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तो तुमने मुझे क्षमा कर दिया सेल यह मैं जानता था मैं जानता था तुम मुझे आवश्यक क्षमा कर दोगी परंतु सील प्रिया अपने को मैं कभी नहीं क्षमता करूंगा कभी
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चित्र सम
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नहीं मित्र तुझे किसी ने भ्रमित किया है तू मूर्ख है मित्र मैंने उसे स्वयं दुर्गा के बंदी गृह में पहुंचा है अरे जल गर्भ में बंदी घर का द्वार है
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इसी समय सोम नागरिक लंपट का वेट धारण किए अड्डे में एक आसन पर बैठ गया मध्य डालने वाली लड़की ने सुर बंद और चषक उसके आगे धर दिए सोमनाथ थोड़े से स्वर्ण खंड देहांत के आगे फेंक कर
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और चषक पीकर
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बहुत बार दूर दूर तक गांव बस्ती का चिन्ह भी ना होता था कहीं कहीं गांव के निकट आने पर गांव के लोग बाहर आकर उसे मारपीट कर भगा देते थे या उसे पर धूल पत्थर घिस गंदगी फेंकते थे ऐसा भी होता था कि उसे लोग उठाकर पटक देते थे यह चुपचाप ध्यान में बैठे हुए को धकेल कर आसान से गिरा
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सोम के आने की आहट उन्हें नहीं मिली वह दबे पांव उनके पीछे जाकर
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मैं आज ही मित्र बंधु से कहूंगा मित्र रहस्य की बात है बंधन मेरा क्या बाधित
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और कुमार विद्युत उप उसकी क्या बात आप बंदी है क्या सच यह क्या कहते हो
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